शाहीन बाग़ से संविधान -शरीफ का पाठ :काठ का उल्लू बने रहने का कोई फायदा ?
नगर -नगर डगर- डगर हर पनघट पर पढ़ा जा रहा है :संविधान शरीफ। ताज़्ज़ुब यह है ये वही लोग हैं जो केवल और केवल क़ुरान शरीफ (क़ुरआन मज़ीद ,हदीस )के अलावा और किसी को नहीं मानते -तीन तलाक से लेकर मस्जिद में औरत के दाखिले तक। ये वही मोतरमायें हमारी बाज़ी और खालाएँ जो हाथ भर का बुर्क़ा काढ़ लेती हैं घर से पाँव बाहर धरने से पहले।
कैसे हैं ये खुदा के बन्दे जो जुम्मे की नमाज़ के फ़ौरन बाद हिंसा में मशगूल हो जाते हैं -नागरिकता तरमीम क़ानून के खिलाफ।
कितना कौतुक होता है जब तीन साल की बच्ची से कहलवाया जाता है :आज़ादी आज़ादी लेके रहेंगे आज़ादी ज़िन्ना वाली आज़ादी। इस बालिका को क्या इसके वालिद साहब और अम्मीजान तक को इल्म नहीं होगा जिन्ना आखिर कौन था फिर वह तो पाकिस्तान चला गया था। (आप लोग भी आज़ाद हैं वहां जाने के लिए ). सब जानते हैं बंटवारा देश का उसी ने करवाया था यह कहकर मुसलमान हिंदू भारत के साथ नहीं रह सकता है। कितने ही उनके साथ चले भी गए थे। उनकी मृत्यु के बाद १९४९ में ज़नाब लियाकत अलीखान (वज़ीरे खानम )ने ज़िन्ना के सेकुलर पाकिस्तान खाब को तोड़कर इसे इस्लामी घोषित कर दिया। गौर तलब है मार्च १९४९ के इस ओब्जेक्टिव्स रिज़ॉल्यूशन की हिमायत उस वक्त के कांस्टीटूएंट असेम्ब्ली के शिया और अहमदिया मेमब्रान ने भी की थी। इसके बाद यहां से वहां गए इन मज़हबी मुसलमानों का क्या हुआ भारत क्या और क्यों जाने।अलबत्ता हिन्दुओं का जो उस और थे ज़िम्मा हमने तब भी लिया था ये कहते हुए वहां सताये जाने पर आप यहां आ सकते हैं। नागरिकता इन्हीं अभागों को अब जाके दी जा रही है जिनकी संख्या वहां सिर्फ डेढ़ फीसद रह गई है.
संविधान शरीफ का हवाला देने वाले ये लोग न क़ुरआन की हिदायतों आयतों से वाकिफ हैं न संविधान की धाराओं से।
शाहीन बागिया छब्बीस जनवरी से पहले अपना डेरा तम्बू खुद ही उखाड़ लें यही बेहतर है। इस मौके पर जबकि इंतिहा पसंद ,दहशत - गर्द किसी बड़ी वारदात की घात में हैं देश की सुरक्षा को यूं इन कानून को तोड़ने वालों के हवाले नहीं किया जा सकता। कहाँ लिखा है किसी कतैब में आप सड़क रोक के तम्बू तान सकते हैं। दुधमुहों को ठंड में चौराहे पर आधे अधूरे इंतज़ामात ग़ुस्ल के करके छोड़ सकते हैं और लम्बी तान के खुद सो सकते हैं अपनी इज़्ज़त सड़क के हवाले कर।पुलिस कब तक सम्हाल करे आपकी ?
शान्ति प्रिय सरकार और वृहत्तर भारत धर्मी समाज को आप यूं इम्तिहान न लें के हमें कहना पड़े :ज़ुल्म की मुझपे इन्तिहाँ कर दे ,मुझसा बे जुबां फिर मिले ,न मिले।
विशेष :अब जबकि देश की शीर्ष अदालत ने नागरिकता संशोधन क़ानून पर फौरी रोक लगाने से इंकार कर दिया है ,शाहीन बाग़ के मुख्य मार्ग को नागरिकता विरोधी प्रदर्शन कारियों को तत्काल प्रभाव से खाली करना चाहिए। काठ का उल्लू बने रहने से अब कोई लाभ नहीं होगा। आपका विरोध मेरे अज़ीमतर भाइयो और बहनो दर्ज़ कर लिया गया है ज्यादा खींचने से विरोध की डोरी टूट जातीं है पतंग के मांझे की तरह लूट ली जाती है। सुतराम! खुदा हाफ़िज़ !
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा फादर आफ कमांडर निशांत शर्मा ,२४५ /२ ,विक्रम विहार ,शंकर विहार कॉम्प्लेक्स ,दिल्ली -छावनी ११० ०१०
८५ ८८ ९८ ७१५०
https://www.youtube.com/watch?v=-1JATDtdSdY
नगर -नगर डगर- डगर हर पनघट पर पढ़ा जा रहा है :संविधान शरीफ। ताज़्ज़ुब यह है ये वही लोग हैं जो केवल और केवल क़ुरान शरीफ (क़ुरआन मज़ीद ,हदीस )के अलावा और किसी को नहीं मानते -तीन तलाक से लेकर मस्जिद में औरत के दाखिले तक। ये वही मोतरमायें हमारी बाज़ी और खालाएँ जो हाथ भर का बुर्क़ा काढ़ लेती हैं घर से पाँव बाहर धरने से पहले।
कैसे हैं ये खुदा के बन्दे जो जुम्मे की नमाज़ के फ़ौरन बाद हिंसा में मशगूल हो जाते हैं -नागरिकता तरमीम क़ानून के खिलाफ।
कितना कौतुक होता है जब तीन साल की बच्ची से कहलवाया जाता है :आज़ादी आज़ादी लेके रहेंगे आज़ादी ज़िन्ना वाली आज़ादी। इस बालिका को क्या इसके वालिद साहब और अम्मीजान तक को इल्म नहीं होगा जिन्ना आखिर कौन था फिर वह तो पाकिस्तान चला गया था। (आप लोग भी आज़ाद हैं वहां जाने के लिए ). सब जानते हैं बंटवारा देश का उसी ने करवाया था यह कहकर मुसलमान हिंदू भारत के साथ नहीं रह सकता है। कितने ही उनके साथ चले भी गए थे। उनकी मृत्यु के बाद १९४९ में ज़नाब लियाकत अलीखान (वज़ीरे खानम )ने ज़िन्ना के सेकुलर पाकिस्तान खाब को तोड़कर इसे इस्लामी घोषित कर दिया। गौर तलब है मार्च १९४९ के इस ओब्जेक्टिव्स रिज़ॉल्यूशन की हिमायत उस वक्त के कांस्टीटूएंट असेम्ब्ली के शिया और अहमदिया मेमब्रान ने भी की थी। इसके बाद यहां से वहां गए इन मज़हबी मुसलमानों का क्या हुआ भारत क्या और क्यों जाने।अलबत्ता हिन्दुओं का जो उस और थे ज़िम्मा हमने तब भी लिया था ये कहते हुए वहां सताये जाने पर आप यहां आ सकते हैं। नागरिकता इन्हीं अभागों को अब जाके दी जा रही है जिनकी संख्या वहां सिर्फ डेढ़ फीसद रह गई है.
संविधान शरीफ का हवाला देने वाले ये लोग न क़ुरआन की हिदायतों आयतों से वाकिफ हैं न संविधान की धाराओं से।
शाहीन बागिया छब्बीस जनवरी से पहले अपना डेरा तम्बू खुद ही उखाड़ लें यही बेहतर है। इस मौके पर जबकि इंतिहा पसंद ,दहशत - गर्द किसी बड़ी वारदात की घात में हैं देश की सुरक्षा को यूं इन कानून को तोड़ने वालों के हवाले नहीं किया जा सकता। कहाँ लिखा है किसी कतैब में आप सड़क रोक के तम्बू तान सकते हैं। दुधमुहों को ठंड में चौराहे पर आधे अधूरे इंतज़ामात ग़ुस्ल के करके छोड़ सकते हैं और लम्बी तान के खुद सो सकते हैं अपनी इज़्ज़त सड़क के हवाले कर।पुलिस कब तक सम्हाल करे आपकी ?
शान्ति प्रिय सरकार और वृहत्तर भारत धर्मी समाज को आप यूं इम्तिहान न लें के हमें कहना पड़े :ज़ुल्म की मुझपे इन्तिहाँ कर दे ,मुझसा बे जुबां फिर मिले ,न मिले।
विशेष :अब जबकि देश की शीर्ष अदालत ने नागरिकता संशोधन क़ानून पर फौरी रोक लगाने से इंकार कर दिया है ,शाहीन बाग़ के मुख्य मार्ग को नागरिकता विरोधी प्रदर्शन कारियों को तत्काल प्रभाव से खाली करना चाहिए। काठ का उल्लू बने रहने से अब कोई लाभ नहीं होगा। आपका विरोध मेरे अज़ीमतर भाइयो और बहनो दर्ज़ कर लिया गया है ज्यादा खींचने से विरोध की डोरी टूट जातीं है पतंग के मांझे की तरह लूट ली जाती है। सुतराम! खुदा हाफ़िज़ !
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा फादर आफ कमांडर निशांत शर्मा ,२४५ /२ ,विक्रम विहार ,शंकर विहार कॉम्प्लेक्स ,दिल्ली -छावनी ११० ०१०
८५ ८८ ९८ ७१५०
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