Skip to main content

क्या आपको यकीन है राहुल गांधी कैलाश गए थे? ये पढ़ें


क्या आपको यकीन है राहुल गांधी कैलाश गए थे? ये पढ़ें


राहुल गांधी कैलाश मानसरोवर की यात्रा से लौट आए, लेकिन इसके साथ ही उनकी यात्रा को लेकर विवाद एक बार फिर से खड़ा हो गया है। सिर्फ 10 दिन में यात्रा पूरी करके लौटने वाले वो हिंदुस्तान के शायद पहले शख्स होंगे। यह शक जताया जा रहा है कि संभवत: उन्हें चीनी सेना ने अपने हेलीकॉप्टर या गाड़ी पर बिठाकर कैलाश यात्रा करवाई। राहुल सिर्फ फोटो खिंचवाने के लिए कुछ देर वहां रुके होंगे और फिर वापस लौट आए। कैलाश मानसरोवर जाने वाले तमाम लोगों का भी यही कहना है कि अगर कोई चलकर वहां जाता है तो इतनी जल्दी लौट ही नहीं सकता। इतना ही नहीं लौटते ही वो भारत बंद में पदयात्रा नहीं कर सकता। जो सबसे बड़ा सबूत है वो ये कि कैलाश मानसरोवर जाने वालों को चेहरे पर सनबर्न हो जाते हैं। लोगों के चेहरे बिल्कुल काले या फिर लाल हो जाते हैं। जबकि राहुल गांधी के चेहरे पर ऐसे कोई निशान नहीं हैं। यह भी पढ़ें: नेहरू की गलती से आज चीन में है कैलाश मानसरोवर

21 दिन की यात्रा 10 दिन में कैसे?

पवित्र कैलाश पर्वत तक पहुंचने के लिए भारत से दो रास्ते हैं। पहला रास्ता उत्तराखंड के लिपुलेख दर्रे से होते हुए है जिसमें लोगों को चलना पड़ता है। इस मार्ग से यात्रा की अवधि 24 दिनों की होती है। दूसरा मार्ग सिक्किम के नाथूला दर्रे से होकर जाता है। इसमें ट्रेकिंग नहीं करनी होती है पूरी यात्रा वाहन से होती है। इसमें 21 दिन लगते हैं। मोदी सरकार आने के बाद ये रास्ता खोला गया है। राहुल गांधी की कैलाश मानसरोवर यात्रा 31 अगस्त के दिल्ली से शुरु हुई थी। शुरुआत से ही अजीबोगरीब बातें सामने आने लगीं। सबसे पहले पता चला कि राहुल चाहते थे कि चीन के राजदूत उन्हें दिल्ली के वीआईपी लाउंज में एक आधिकारिक क्रार्यक्रम के तहत विदा करें। इस पर चीनी दूतावास ने विदेश मंत्रालय को चिट्ठी भेजकर इजाज़त मांगी। विदेश मंत्रालय ने ये कहते हुए इसे खारिज कर दिया कि राहुल गांधी न तो किसी संवैधानिक पद पर हैं, न ही किसी ऐसे पद पर कभी रहे हैं। वैसे भी वो दिल्ली से चीन नहीं, बल्कि नेपाल रवाना हुए थे।

राहुल का नेपाल जाना भी एक पहेली

कैलाश जाने के लिए राहुल गांधी नेपाल क्यों गए? ये भी एक रहस्य है। अगर उन्हें नाथूला दर्रे से कैलाश जाना था तो उन्हें बागडोगरा एयरपोर्ट जाना चाहिए था। लेकिन वो नेपाल चले गए। इस यात्रा में वो अकेले नहीं थे रिपोर्ट्स के मुताबिक राहुल गांधी के साथ उनके कुछ खास दोस्त और सलाहकार भी थे। उनके दोस्तों में अमिताभ बच्चन के भाई अजिताभ बच्चन के बेटे भीम बच्चन भी उनके साथ थे। मतलब साफ है कि ये कोई धार्मिक यात्रा नहीं बल्कि मौजमस्ती और सैर-सपाटे वाला टूर था। नेपाल जाने की दो वजहें थीं। पहला ये कि वो काठमांडू का लुत्फ भी उठाना चाहते थे साथ ही राहुल को ये सुझाव दिया गया था कि कैलाश मानसरोवर से पहले अगर पशुपतिनाथ मंदिर में दर्शन हो जाए तो एक पंथ दो काज हो जाएगा। सच्चा शिवभक्त साबित करने में कांग्रेस प्रवक्ताओं को एक ठोस सबूत मिल जाएगा। लेकिन सवाल ये है कि ये कैसा शिवभक्त है जो काठमांडू तो गया लेकिन पशुपतिनाथ मंदिर नहीं गया? ये भला कैसे हो सकता है कि कोई शिवभक्त काठमांडू एयरपोर्ट तक पहुंच जाए लेकिन बगल में पशुपतिनाथ मंदिर न जाए? यह भी पढ़ें: हमेशा से हिंदू विरोधी रही है कांग्रेस, 10 सबसे बड़े सबूत

पशुपतिनाथ मंदिर क्यों नहीं गए राहुल?

दरअसल राहुल गांधी अपने दोस्तों के साथ 31 अगस्त को दोपहर एक बजे काठमांडू पहुंचे। फिर वहां उन्होंने पशुपतिनाथ मंदिर जाने की इच्छा जताई। उनके साथ गए लोगों ने काठमांडू के कुछ पुराने नेताओं से बात की। वो 1 तारीख की सुबह पशुपतिनाथ मंदिर जाना चाहते थे। लेकिन जब ये प्रस्ताव आया तो पशुपतिनाथ मंदिर के मैनेजमेंट ने इस विषय पर एक मीटिंग बुलाई, जिसमें ये तय करना था कि राहुल गांधी को हिंदू माना जाए या नहीं। पशुपतिनाथ मंदिर के गर्भगृह में सिर्फ हिंदू ही जा सकते हैं। मंदिर प्रबंधन ने वही फैसला लिया जो 1985 में सोनिया गांधी के लिए लिया था। प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पत्नी के रुप में सोनिया काठमांडू गई थी लेकिन इसके बावजूद उन्हें मंदिर में घुसने नहीं दिया गया था। इसी तरह इस बार भी राहुल गांधी के हिंदू होने पर मंदिर प्रबंधन को भऱोसा नहीं था इसलिए राहुल गांधी को मना कर दिया गया।

राहुल की गतिविधियां भी थीं संदिग्ध

राहुल गांधी देश के बड़े नेता हैं। कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष हैं। जब वो नेपाल के लिए रवाना हुए तो चीनी राजदूत से औपचारिक विदाई चाहते थे लेकिन जब वो अपने दोस्तों के साथ काठमांडू पहुंचे तो न ही उन्होंने काठमांडू में मौजूद भारतीय उच्चायोग से संपर्क किया न ही विदेश मंत्रालय को कोई खबर दी। काठमांडू पहुचने के बाद राहुल की मित्र मंडली वहां होटल ढूंढने में जुट गई। जब इसका पता उच्चायोग के अधिकारियों को चला तो उन्होंने मदद की और सुरक्षा मुहैय्या कराया। लेकिन, शाम होते ही वो फिर काठमांडू में मौजमस्ती के लिए निकल पड़े। वूडू रेस्तरां में डिनर किया जहां ये विवाद खड़ा हो गया कि उन्होंने चिकन और सुअर का मांस खाया। राहुल के मांसाहार की खबर भारतीय मीडिया ने नहीं, बल्कि नेपाली मीडिया ने दी थी।

मानसरोवर के बजाय ल्हासा क्यों गए?

पशुपतिनाथ मंदिर में एंट्री नहीं मिलने के बाद राहुल अगले दिन अपने दोस्तों के साथ काठमांडू से तिब्बत के ल्हासा रवाना हो गए। उन्होंने दोपहर 12:10 बजे वाली एयर चाइना 408 की फ्लाइट पकड़ी। सवाल ये है कि वो ल्हासा क्यों गए? ये तो मानसरोवर का रास्ते में पड़ता नहीं है। दरअसल ये शहर तो मानसरोवर के ठीक उल्टी दिशा में हैं। राहुल गांधी ल्हासा इसलिए गये क्योंकि मौजमस्ती करने वालो और अमीरों के लिए मानसरोवर का रास्ता ल्हासा से गुजरता है। राहुल गांधी ल्हासा में 2-3 दिन रुके। आराम किया। तिब्बत के पठारी वातारवऱण में खुद को ढाला और फिर ल्हासा से फ्लाइट के जरिए न्गोरा शहर पहुंचे। तिबब्त का ये शहर मानसरोवर और कैलाश के सबसे करीब है। ये शहर कैलाश से करीब 190 किलोमीटर दूर है लेकिन दोनों को चायनीज नेशनल हाइवे नंबर 219 जोड़ता है। यानि काठमांडू से ल्हासा फिर ल्हासा से न्गारो और वहां से गाड़ी पर बैठ कर मानसरोवर और फिर कैलाश पर्वत तक पहुंचे।

34 घंटे पदयात्रा का झूठ बोला गया!

राहुल गांधी की तरफ से कांग्रेस पार्टी ने ट्वीट करके बताया कि उन्होंने लगातार 34 किलोमीटर तक पैदल रास्ता तय किया। इस दौरान वो घोड़े पर भी बैठ सकते थे, लेकिन नहीं बैठे। लेकिन सूत्रों से मिल रही जानकारी के मुताबिक यह पूरी तरह गलत है। कई ट्रेकर्स ने भी लिखा है कि बेहद कम ऑक्सीजन वाले उस इलाके में 34 किलोमीटर तक इतने कम समय में लगातार चलना एक तरह से नामुमकिन होता है। बीच-बीच में रुककर आराम करना जरूरी होता है। लेकिन खुद को फिट साबित करने के लिए राहुल गांधी ने यह झूठ बताया कि वो 34 किलोमीटर चले। वैसे भी अगर को इतना पैदल चले तो उसे सनबर्न (ऊंचे पहाड़ों पर तेज़ धूप के कारण त्वचा जलना) होना तय था। जो लोग भी कैलाश से लौटते हैं वो काफी काले हो जाते हैं। गोरे लोगों का भी चेहरा बिल्कुल लाल या कत्थई हो जाता है। लेकिन राहुल गांधी को देखकर ऐसा नहीं लगता कि उन्हें कोई सनबर्न हुआ। इसी बात से शक होता है कि वो कार से कैलाश तक पहुंचे होंगे। साथ ही कैलाश यात्रा से आने वाले बिल्कुल फिट व्यक्ति को भी 2-4 दिन आराम करना ही पड़ता है। लेकिन राहुल गांधी अगले ही दिन जिस फुर्ती से भारत बंद कराने निकल पड़े वो बात भी कई लोगों को हजम नहीं हुई।

चीन सरकार के मेहमान बने थे राहुल

कैलाश मानसरोवर कैसी तीर्थयात्रा है इसके बारे में वो लोग बता सकते हैं जो पहाड़ पर मीलों पैदल चल कर मानसरोवर पहुंचते हैं? इस तरह से कैलाश अगर जाना हो तो दो दिन में वहां पहुंचा जा सकता है। लेकिन राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी को ये बताना चाहिए कि उन्होंने नेपाल में क्या क्या किया? ल्हासा में कितने दिन रहे और किस-किस से मिले? मानसरोवर की यात्रा के दौरान चीन की सरकार और एजेंसी से क्या क्या मदद ली? क्योंकि जिस तरह से चीनी राजदूत की तरफ से सरकार को चिट्ठी दी गई उससे तो यही लगता है कि नेपाल से ल्हासा पहुंचने के बाद राहुल की खातिरदारी चीनी सरकार की तरफ से की गई होगी। राहुल गांधी और उनके दोस्तों को तीर्थयात्रा और सैर-सपाटे का फर्क समझ में नहीं आया। यही वजह है कि कैलाश पहुंचते ही तस्वीरें शेयर करने लगे। वीडियो भी अपलोड कर दिया। कैलाश मानसरोवर तक पहुंचने वाला हर हिंदू वहां पर थोड़ी-पूजा पाठ और स्नान जरूर करता है। अब तक की तस्वीरों से ऐसा कोई लक्षण नहीं दिखता कि राहुल गांधी ने कैलाश पर्वत की तरफ मुंह करके एक बार श्रद्धा से नमस्कार भी किया होगा।
वैसे मत्स्य पुराण, स्कंद पुराण और गरुड़ पुराण में लिखा है पदयात्रा ही तीर्थ यात्रा है।
ऐश्वर्य लोभान्मोहाद् वागच्छेद यानेन यो नरः।
निष्फलं तस्य तत्तीर्थ तस्माद्यान विवर्जयेत्। (मतस्य पुराण)
तीर्थयात्रा में वाहन/यान वर्जित है क्योंकि ऐश्वर्य के गर्व से, मोह से या लोभ से जो यान पर बैठकर तीर्थयात्रा करता है, उसकी तीर्थ यात्रा निष्फल हो जाती है। राहुल गांधी ने अपनी तीर्थयात्रा के बारे में सच बोला या झूठ बोला आने वाले समय में उनको मिलने वाले भगवान महादेव के आशीर्वाद से खुद ही स्पष्ट हो जाएगा।
सन्दर्भ -सामिग्री :
http://newsloose.com/2018/09/11/truth-of-rahul-gandhi-kailash-mansarovar-yatra/

Comments

Popular posts from this blog

ये महज इत्तेफाक नहीं कंसिस्टेंसी है लगातार कई बरसों में लोकप्रियता के भूमंडलीय पैमाने पर मोदी विश्वके सबसे लोकप्रिय जनप्रिय नेता बने हुए हैं

ये महज  इत्तेफाक नहीं कंसिस्टेंसी है लगातार कई बरसों में लोकप्रियता के भूमंडलीय पैमाने पर मोदी विश्वके सबसे लोकप्रिय जनप्रिय नेता बने हुए हैं मैं उनके तमाम चाहने वालों को बधाई देता हूँ। अपने आप को भी  न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली   Published by:  संजीव कुमार झा  Updated Fri, 03 Feb 2023 02:45 PM IST सार देश Morning Consult Report: व्यस्कों के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक बार फिर से दुनिया के सबसे लोकप्रिय नेता चुने गए हैं। उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक समेत 16 देशों के दिग्गज नेताओं को पीछे छोड़ दिया है। पीएम मोदी(फाइल फोटो)  - फोटो : पीटीआई Play 01:07 / 01:31 Follow Us विस्तार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक बार फिर से दुनिया के सबसे लोकप्रिय नेता चुने गए हैं। मॉर्निंग कंसल्ट (Morning Consult) की वेबसाइट पर जारी सूची में पीएम मोदी 78 फीसदी ग्लोबल लीडर अप्रूवल रेटिंग के साथ टॉप पर हैं। उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक समेत 16 देशों के दिग्गज नेताओं को पीछे छोड़ दिय...

सुबह खाली पेट ही गुड़ खाकर गर्म पानी पी लें, जड़ से खत्म हो जाएंगें ये 3 रोग

जयपुर, हमारे देश मे लोग मीठा खाना बहुत पसंद करते है। पुराने जमाने में लोग खाने के साथ गुड़ का जरूर सेवन करते थे। क्योंकि यह उनका एक अलग ही तरह का शौक था। लेकिन दोस्तों कुछ लोग ऐसे होते है जो चाहकर भी मीठा नहीं खा पाते हैं। क्योंकि उनके शरीर की बीमारियों के चलते  मिठाइयों  से परहेज करना पड़ता है। आयुर्वेद में अलग अलग बीमारियों के लिए अलग अलग चीजों का सेवन बताया है जिससे इंसान एकदम स्वस्थ रह सकता है। How Jennifer Looks Today is Jaw Dropping Healthy Life Design साथ ही अपने खाने का शौक भी पूरा कर सकता है। आयुर्वेद मे कुछ ऐसी चीजों का  विवरण दिया गया हैं। जिसके सेवन से शरीर के कई सारे रोग मिट जाते हैं। आज हम गुड़ की बात करेंगे। जो कई सारे रोगों का रामबाण ईलाज माना जाता है।  जिन लोगों के शरीर मे खून की कमीं हो उन लोगों को गुढ़ का सेवन अधिक करना चाहिए। क्योंकि इसमें आयरन की भरपूर मात्रा होती हैं। जो हमारे शरीर के लिए बहुत फायदेमंद होता हैं।  अगर आप रोजाना खाली पेट गुड़ खाकर एक ग्लास गर्म प...

Supreme court refuses to put CAA on hold

शाहीन बाग़ से संविधान -शरीफ का पाठ  :काठ का उल्लू बने रहने का कोई फायदा ? नगर -नगर डगर- डगर हर पनघट पर  पढ़ा जा रहा है :संविधान शरीफ। ताज़्ज़ुब यह है ये वही लोग  हैं  जो केवल और केवल  क़ुरान शरीफ (क़ुरआन मज़ीद ,हदीस )के अलावा और किसी को नहीं  मानते -तीन तलाक से लेकर मस्जिद में औरत के दाखिले तक। ये वही मोतरमायें हमारी बाज़ी और खालाएँ जो हाथ भर का बुर्क़ा काढ़ लेती हैं घर से पाँव बाहर धरने से पहले।   कैसे हैं ये खुदा के बन्दे जो जुम्मे की नमाज़ के फ़ौरन बाद हिंसा में मशगूल हो जाते हैं -नागरिकता तरमीम क़ानून के खिलाफ।  कितना कौतुक होता है जब तीन साल की बच्ची से कहलवाया जाता है :आज़ादी आज़ादी लेके रहेंगे आज़ादी ज़िन्ना वाली आज़ादी। इस बालिका को क्या इसके वालिद साहब और अम्मीजान तक को इल्म नहीं होगा जिन्ना आखिर कौन था फिर वह तो पाकिस्तान चला गया था। (आप लोग भी आज़ाद हैं वहां जाने के लिए ). सब जानते हैं बंटवारा देश का उसी ने करवाया था यह कहकर मुसलमान हिंदू भारत के साथ नहीं रह सकता है। कितने ही उनके साथ चले भी गए थे।  उनकी मृत्यु ...