
केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्रालय #MeTooIndia अभियान के तहत सामने आई शिकायतों की जांच के लिए एक कमेटी का गठन करेगा.
इस कमेटी में रिटायर्ड जज शामिल होंगे.
मंत्रालय की ओर से शुक्रवार को दी गई जानकारी के मुताबिक, ये कमेटी कामकाजी जगह पर यौन उत्पीड़न की शिकायतों की स्थिति के समाधान के लिए बने कानूनी और संस्थागत ढांचे को देखेगी और मंत्रालय को सुझाव देगी कि इस ढांचे को कैसे मजबूत किया जा सकता है.
केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने कहा है, "मैं हर शिकायत के पीछे मौजूद दर्द और पीड़ा में भरोसा करता हूं. काम की जगह पर यौन उत्पीड़न के मामलों में ज़ीरो टॉलरेंस की नीति अपनाई जानी चाहिए."

कब शुरू हुआ भारत में #MeToo अभियान?
हॉलीवुड में शुरू हुए #MeToo अभियान की पहली सालगिरह भारतीय औरतों के लिए नई हिम्मत लेकर आई. बीते हफ़्ते से भारतीय महिलाएं और युवतियां अपने साथ हुए उत्पीड़न की कहानियां सोशल मीडिया पर साझा कर रही हैं.
ये कहानियां फ़िल्मी जगत, पत्रकारिता और राजनीति से जुड़े लोगों की कमीज़ पर आरोपों की बौछारें छोड़ गईं. कई लोगों को इस्तीफ़ा देना पड़ा और कुछ को सोशल मीडिया ट्रायल का सामना करना पड़ा.
#MeToo के तेवर का अंदाज़ इस बात से लगाइए कि इसका समर्थन करने वालों ने अगर इस अभियान के दूसरे पहलुओं पर ध्यान दिलाने की कोशिश की तो वो एंटी #MeToo करार दिए गए.
सच्ची कहानियों के बाद मांगी गई माफियों के बीच कुछ मामले ऐसे भी रहे, जिनको #MeToo अभियान का हिस्सा माना जाए या नहीं, इसको लेकर लोग असमंजस में रहे.
#MeToo अभियान में कुछ ऐसे सवाल हैं, जिनके स्पष्ट जवाब कम लोगों को मालूम हैं. हमने ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा और सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील इंदिरा जय सिंह से जानने की कोशिश की.

ME TOO: ज़रूरी सवाल और जवाब
उत्पीड़न करने वाले के ख़िलाफ़ सोशल मीडिया पर लिखने से पहले या बाद में एक औरत क्या कर सकती है?
रेखा शर्मा: अतीत या वर्तमान में जिन औरतों के साथ यौन उत्पीड़न हुआ वो #MeToo अभियान पर लिख रही हैं. ऐसा करने के बाद लड़की को लिखित में पुलिस या राष्ट्रीय महिला आयोग में शिकायत देनी होगी. अगर मौजूदा दफ़्तर से जुड़ी शिकायत है तो ऑफिस की इंटरनल कंप्लेंट कमेटी यानी ICC में शिकायत करनी होगी ताकि कमेटी फ़ैसला ले सके. तीन महीने के भीतर दफ़्तर को फ़ैसला लेना होता है. शिकायत के आधार पर हम पुलिस से एफआईआर और जांच की मांग करते हैं. आरोप साबित होने पर हम कोर्ट में केस को ले जाते हैं. आगे का फ़ैसला कोर्ट करती है. अगर लड़की को ज़रूरत है तो हम काउंसलिंग भी करते हैं. परिवारों को भी समझाना होता है कि आपकी लड़की की ग़लती नहीं है. अगर ऐसी किसी लड़की को शेल्टर होम की ज़रूरत है तो हम वो भी करते हैं. #MeToo अभियान शुरू होने के बाद हमें एक भी शिकायत नहीं मिली है.
इंदिरा जय सिंह: अगर सोशल मीडिया पर लिखने के बाद औरत की मर्ज़ी है तो वो आगे की कार्रवाई के लिए कई चीज़ें कर सकती है. अगर वो क्रिमिनल केस करना चाहती हैं तो औरतों को थाने जाना होगा. अगर वो सिविल केस करना चाहती हैं तो कोर्ट जा सकती हैं. अगर दफ्तर में हैं तो आईसीसी के पास जा सकती हैं. कौन सा रास्ता चुनना है, ये लड़की तय करेगी.
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सिर्फ़ शिकायत करने से हो जाएगा या सबूत देने होंगे?
इंदिरा जय सिंह: लड़की के आरोप सही हैं या ग़लत, इसका फ़ैसला कोर्ट करेगा. अगर किसी लड़की ने घटना के बाद किसी को अपना सच बताया हो तो कोर्ट में उसे गवाह के तौर पर पेश किया जा सकता है.
रेखा शर्मा: कई चीज़ों में सबूत नहीं होते हैं. सालों पुरानी शिकायतों में सबूत नहीं होते. मगर कोई ख़त या मैसेज है, जिससे आरोप साबित हो सके. आरोपों की पुलिस जांच करेगी. दोनों पक्षों के उपलब्ध कराए सबूतों के आधार पर पुलिस फ़ैसला लेगी. आगे का सच या झूठ कोर्ट तय करेगा.
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पुराने रिश्तों के बिगड़ने को #MeToo अभियान से जोड़ना सही या ग़लत?
इंदिरा जय सिंह: आप इस बात को समझिए कि कोर्ट को सच पता चल जाता है. सच या झूठ में फ़र्क़ करना कोर्ट जानता है. ऐसा तो नहीं होने वाला है कि कोई साफ झूठ बोल दे और सज़ा हो जाए. ऐसा नहीं होने वाला है. मगर अगर कोई मर्द किसी रिश्ते में एक औरत से झूठ बोलकर संबंध बनाता है कि वो शादी करेगा और बाद में ऐसा नहीं करता है तो कोर्ट इसे रेप मानेगा. लेकिन ऐसा कोई आश्वासन नहीं दिया गया है तो ऐसा नहीं होगा.
रेखा शर्मा: पुराने बिगड़े रिश्तों को #MeToo अभियान से जोड़ना ग़लत है. सहमति से बने पुराने संबंधों का आज दुरुपयोग करना ग़लत है. अगर दफ्तरों में बनी कमेटी में कोई शिकायत झूठी पाई जाती है तो जुर्माने का प्रावधान है. अगर दफ्तर से बाहर की बात करें और कोई मामला झूठा होता है तो हम केस ड्रॉ कर देते हैं.

दफ्तरों में बनी ICC में शिकायत करने पर नौकरी जाने का ख़तरा?
इंदिरा जय सिंह: हमारे कानून में कुछ कमियां हैं. शिकायत करने पर किसी को हटाया नहीं जा सकता है. लेकिन असल में होता ये है कि काम का हवाला देकर हटा दिया जाता है. ऐसे में कानून में बदलाव लाने की ज़रूरत भी है.
रेखा शर्मा: अगर कोई दफ़्तर में बनी कमेटी से संतुष्ट नहीं है तो डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर से शिकायत कर सकती है. तब डिस्ट्रिक्ट कमेटी में शिकायत सुनी जा सकती है. अगर इसके बाद मामला हम तक आता है तो हम दोनों पक्षों को बुलाकर सुनवाई करते हैं. कई बार हमने कमेटी को दोबारा बनाने के लिए कहा है. अगर समाधान नहीं निकलता है तो हम पुलिस की तरफ बढ़ते हैं.
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कुछ अहम बातें...
रेखा शर्मा: ज़बरदस्ती ज़बरदस्ती ही होती है. चाहे लड़की करे या लड़का.
इंदिरा सिंह: एक लड़का किसी भी ऐसे झूठे मामले में मानहानि का केस कर सकता है. कानून के दरवाज़े सबके लिए खुले हुए हैं. ऐसा नहीं है कि लड़कों के हक के लिए कानून नहीं है.
रेखा शर्मा: रेप करना सीन की डिमांड नहीं हो सकता. अगर सीन में पहले से लिखा है कि आपको क्या करना है और आपकी सहमति है तो ठीक है. लेकिन अचानक ऐसा कुछ करने के लिए कहा जा रहा है तो ये ग़लत है.
इंदिरा जय सिंह: रेप के मामलों में शिकायत करने की कोई सीमा नहीं है. लेकिन कोर्ट ये सवाल पूछेगा कि आपने उस वक़्त मामला क्यों दर्ज नहीं किया. इसका जवाब कोर्ट में देना होगा.
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