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नेहरू की इन 10 करतूतों का आपको पता तक नहीं होगा!

आजादी के बाद जवाहरलाल नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री बने, लेकिन उनके गलत फैसलों का नतीजा देश आज भी भुगत रहा है। नेहरू की अय्याशियों के किस्से तो आपने बहुत सुने होंगे, लेकिन देशहित के मामलों में उनके मूर्खता भरे फैसलों की कहानियां आम भारतीयों से छिपा ली गईं। बचपन से स्कूली किताबों में जवाहर लाल नेहरू की तारीफों के किस्से पढ़ाए जाते हैं। जबकि उनकी असली करतूतों की कहानियां इतिहास के पन्नों से गायब कर दी गईं। इतना ही नहीं, नेहरू को देश के बच्चों का चाचा घोषित कर दिया गया। लेकिन जवाहर लाल की ये इमेज उनसे जुड़ी सच्चाई से बिल्कुल अलग है। हम आपको बताते हैं जवाहर लाल नेहरू के उन फैसलों के बारे में जिन्हें जानकर आप यही कहेंगे कि नेहरू इस देश के अब तक के सबसे बुरे प्रधानमंत्री थे। अगर नेहरू की जगह कोई भी भारत का पहला प्रधानमंत्री बना होता तो आज देश की तस्वीर अलग होती।



गलती नंबर-1, सुरक्षा परिषद की सीट ठुकराना

भारत की आजादी के बाद 1953 में अमेरिका ने औपचारिक तौर पर भारत के आगे पेशकश रखी थी कि वो सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बन जाए। अमेरिका ने ये प्रस्ताव यह सोचकर रखा था कि भारत आने वाले दिनों में एशिया की एक बड़ी ताकत बनकर उभरेगा। लेकिन हर किसी के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब नेहरू ने भारत की जगह चीन को सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाने की सलाह दे डाली। उस समय भारत में अमेरिकी राजदूत ने विदेश मंत्रालय के अधिकारियों को इस फैसले पर पुनर्विचार करने को भी कहा था। लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। नतीजा आपके सामने है। सुरक्षा परिषद में जगह पाने के लिए नरेंद्र मोदी को दुनिया में घूम-घूम कर छोटे-छोटे देशों के सामने गिड़गिड़ाना पड़ रहा है। भारत के इनकार के बाद चीन को स्थायी सदस्यता मिल गई और आज वो भारत के कई प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र में नामंजूर करवा देता है। मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने के भारत के प्रस्ताव पर चीन ने यूएन में वीटो लगा दिया था। अगर नेहरू ने तब उस पेशकश को स्वीकार कर लिया होता तो कई दशकों पहले भारत एक बेहद मजबूत देश के तौर पर उभर चुका होता।








गलती नंबर-2, न्यूक्लियर सप्लायर देश नहीं बनना

सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता की ही तरह भारत आज न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप यानी एनएसजी की सदस्यता पाने के लिए एड़ी-चोटी का पसीना एक किए हुए है। चीन ही उसे दुनिया के अग्रणी देशों के इस समूह में प्रवेश से रोक रहा है। जबकि आजादी के फौरन बाद भारत के पास मौका था कि वो एनएसजी की सदस्यता हासिल कर ले। पूर्व विदेश सचिव महाराज कृष्ण रसगोत्रा ने अपनी किताब में नेहरू की एक बहुत बड़ी गलती का जिक्र किया है। किताब के मुताबिक उन दिनों अमेरिका के राष्ट्रपति जॉन एफ केनेडी ने नेहरू से कहा था कि वो न्यूक्लियर सप्लायर देशों के क्लब में शामिल हो जाएं और शांतिपूर्ण कामों के लिए एटमी टेक्नोलॉजी के विकास को बढ़ावा दें। लेकिन नेहरू को यह बात समझ में ही नहीं आई। उन्हें लगा कि भारत को कभी एटम बम बनाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इस ऑफर के कुछ साल बाद यानी 1964 में चीन ने अपना पहला न्यूक्लियर टेस्ट किया। लेकिन तब तक बहुत देरी हो चुकी थी और चीन ऐसी बढ़त बना चुका था, जिसे भारत आज तक पाट नहीं सका।

गलती नंबर-3, कश्मीर मामले को यूएन ले जाना

आज कश्मीर में इतना खून-खराबा और सारा विवाद अगर किसी एक व्यक्ति के कारण है तो उसका नाम जवाहर लाल नेहरू है। नेहरू की मूर्खता इसी बात से समझ में आती है कि वो यह मामला खुद लेकर संयुक्त राष्ट्र चले गए थे। इससे पाकिस्तान को मौका मिल गया। और आज भी हर साल संयुक्त राष्ट्र के मंचों पर वो कश्मीर मामला उठाता है और भारत को शर्मिंदा करता है।

गलती नंबर-4, कश्मीर में धारा 370 लगाना

जम्मू कश्मीर के राजा हरि सिंह ने बिना शर्त भारत में विलय की सहमति दे दी थी। लेकिन नेहरू के शैतानी दिमाग में कुछ और ही चल रहा था। इतिहास को ध्यान से देखें तो यह पता चलता है कि नेहरू की नीयत ही नहीं थी कि कश्मीर कभी भारत का हिस्सा बने। इसी मकसद से उन्होंने धारा 370 लागू की, जिसके तहत जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दे दिया गया। यही कारण है कि आज भी भारत के ज्यादातर नियम और कानून जम्मू कश्मीर पर लागू नहीं होते।

गलती नंबर-5, बलूचिस्तान के साथ धोखा

पाकिस्तान के खिलाफ 1948 के युद्ध के दौरान भारतीय सेना ने बलूचिस्तान पर कब्जा कर लिया था। इसके काफी पहले से बलूचिस्तान के सभी कबायली समूहों की संसद (जिरगा) ने प्रस्ताव पास किया था कि वो भारत के साथ रहना चाहते हैं। युद्ध में पाकिस्तान को करारी हार का मुंह देखना पड़ा, तभी नेहरू ने अचानक सीजफायर का एलान कर दिया। उन्हें लगा था कि इसके बदले में उन्हें नोबेल पुरस्कार मिलेगा। लेकिन वो भी हाथ नहीं आया।शान्ति दूत बनने की फिराक में रहा यह  शख्स  ताउम्र। 

गलती नंबर-6, नेपाल नरेश का प्रस्ताव नकारा

1952 में नेपाल के राजा त्रिभुवन विक्रम शाह ने सरकार को औपचारिक तौर पर प्रस्ताव भेजा था कि उनके देश का विलय भारत में कर लिया जाए। लेकिन नेहरू ने ये कहते हुए उनकी बात टाल दी कि “नेपाल का भारत में विलय होने से दोनों देशों को फायदे के बजाय नुकसान ही होगा।” आज नेपाल चीन की गोद में बैठा है और तमाम भारत विरोधी गतिविधियों का केंद्र बना हुआ है। कई लोग इस इनकार के पीछे नेहरू की हिंदू-विरोधी मानसिकता को जिम्मेदार मानते हैं।

गलती नंबर-7, कोको द्वीप समूह म्यांमार को देना

1950 में जवाहर लाल नेहरू ने भारत के पूर्वी इलाके में ‘कोको द्वीप समूह’ को बर्मा (म्यांमार) को तोहफे के तौर पर दे दिया। ये जगह कोलकाता से 900 किलोमीटर दूर बंगाल की खाड़ी में है। म्यांमार ने भारत से ये द्वीप समूह मिलते ही कुछ साल के अंदर ही इसे चीन को दे दिया। आज चीन यहीं से भारत पर निगरानी रखता है। पूरे पूर्वोत्तर इलाके में चीन को इस द्वीप समूह में अपने अड्डे से रणनीतिक मजबूती मिलती है।

गलती नंबर-8, काबू वैली बर्मा को गिफ्ट कर दिया

नेहरू ने कभी इतिहास से सबक नहीं लिया और अपनी सनक के आधार पर फैसले लेते रहे। 1953 में उन्होंने मणिपुर की काबू वैली (Kabaw Valley) को दोस्ती की निशानी के तौर पर बर्मा को दे दिया। जिसने बाद में ये इलाका चीन को लीज़ पर दे दिया। कहते हैं कि यह जगह कश्मीर से भी ज्यादा खूबसूरत है। नेहरू की इस दरियादिली का नतीजा यह हुआ कि मणिपुर में रहने वाले कई परिवार टूट गए। काबू वैली में रहने वाले ज्यादातर लोगों की रिश्तेदारियां मणिपुर के दूसरे हिस्सों में थीं।

गलती नंबर-9, चीन के साथ पंचशील समझौता

नेहरू ने 1954 में चीन के साथ पंचशील समझौता किया था। जिसका नतीजा 1962 में चीन के हमले के रूप में सामने आया। इस युद्ध में चीनी सेना ने भारत को हरा दिया। हार के कारणों को जानने के लिए भारत सरकार ने लेफ्टिनेंट जनरल हेंडरसन और कमानडेंट ब्रिगेडियर भगत की अगुवाई में एक कमेटी बनाई, जिसे हेंडरसन-भगत कमेटी के नाम से जाना जाता है। दोनों अधिकारियों ने अपनी रिपोर्ट में हार के लिए प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को जिम्मेदार ठहराया। वैसे चीन युद्ध में नेहरू की गई गलतियों की लिस्ट निकाली जाए तो एक नई महाभारत लिखी जा सकती है।

गलती नंबर-10, हिंदू कोड बिल

जैसा कि हमने शुरू में ही लिखा है कि नेहरू देश की ज्यादातर मौजूदा समस्याओं की जड़ में हैं, यह मामला भी उसी का एक उदाहरण है। नेहरू ने पहला लोकसभा चुनाव जीतने के बाद हिंदू कोड बिल यह कहते हुए लागू किया कि इससे हिंदू समाज में सुधार आएगा। लेकिन उन्होंने यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करने में असमर्थता जता दी। हिंदू समाज को आपत्ति थी कि अगर सामाजिक सुधार की जरुरत है तो सिर्फ हिंदू समाज ही क्यों? देश के सभी धर्मों के लोगों को भी इसके दायरे में लाया जाना चाहिए। लेकिन जब मुस्लिम धर्म में सुधार की बात आई तो नेहरू जी को सांप सूंघ गया। आज तक ट्रिपल तलाक का मामला लटका हुआ है। शाहबानो केस का नतीजा हम देख ही चुके हैं।
विशेष :कथित चाचा नेहरू मुंह खोलकर कहते थे -मैं इत्तेफाक से हिन्दू हूँ मेरा मन इस्लामी है। फिरंगी संस्कृति के तौर -तरीकों में पला बढ़ा यह आदमी भारत की सर्वसमावेशी संस्कृति की जड़ों को कभी भी न समझ सका। इसीलिए हमारे मुस्लिम भाई आज तलक सामाजिक विकास के हाशिये पर पड़े रहे।इनका इस्तेमाल नेहरुपंथी अपशिष्ट कांग्रेस आज भी वोट बैंक के रूप में ही कर रही है इसीलिए भाषण में इस देश  के संशाधनों पर पहला हक़ बकौल पूर्व प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह जी मुसलामानों का है। व्यवहार में हम सब जानते हैं चंद मुस्लिम फस्टर्स को छोड़कर आज तक मुस्लिम भाई हर क्षेत्र में पीछे रह गए हैं।
आज भी राफेल जैसे देश की सुरक्षा से जुड़े मामलों पर नेहरुपंथी अपशिष्ट कांग्रेस का मसखरा भरम -चारि (भ्रम -चारी )खिलवाड़ कर रहा है।    
संदर्भ
काबू वैली म्यांमार के जरिए चीन को सौंप- http://www.drimsingh.co.uk/2011/08/01/in-retrospect-political-affairs-of-manipur-from-1946-1952/
https://www.thehindu.com/thehindu/2001/01/01/stories/01010005.htm


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