शीर्षक : परिंदे अब भी पर तौले हुए हैं ,हवा में सनसनी घोले हुए हैं :जी ज़नाब देश में आपात काल जैसे हालात हैं -श्री यशवंत सिन्हा जी
भले अ -सहनशीलता का मुद्दा उठाने वाले कई अशोक आज शोकाकुल हैं क्योंकि अब मैदान में उनके पिताजी उतर आएं हैं यह कहते हुए कि आज देश में आपातकाल जैसे हालत हैं। बिलकुल हैं क्योंकि आज :
(१ )सरे आम चंद कुरसाये लोग(जयचंदी नरेश ) जिन्हें सत्ता कुर्सी नहीं मिली अपेक्स कोर्ट के न्यायाधीशों को रात बिरात उठाकर देश की प्रति-रक्षा से जुड़े मामलों को भी पलीता लगाने के लिए छुट्टा घूम रहें हैं।
(२ )चंद ऐयाश किस्म के कन्हैयाँ ऐयाशी के अड्डों में पढ़े -बढ़े आज यह कहने को स्वतन्त्र है कि देश का प्रधान-मंत्री ना -लायक है
(३ )एक सनका हुआ संकर ब्रीड का शहज़ादा कहता घूम रहा है देश का चौकीदार चोर है। इस -नबाव ज़ादे को इतना इल्म नहीं है देश चौकीदारी सीमा के सुरक्षा शौर्य बल के पास होती है किसी नागर तंत्र के मुखिया के पास नहीं।
देश में हालात वाकई आपातकाल जैसे हैं। कुछ बदला नहीं है लौटंकों और नौटंकी का स्वरूप ही बदला है।
देश में हालात वाकई आपातकाल जैसे हैं। कुछ बदला नहीं है लौटंकों और नौटंकी का स्वरूप ही बदला है।
(४ )एक पूर्व प्रधानमन्त्री कहते हैं मेरी सरकार किसी रिमोट से नहीं चल रही थी। ठीक बोल रहे हैं :सरकारें तो आदतन चलती हैं ,ये कहना चाहते हैं मैं रिमोट से चल रहा था मेरी सरकार नहीं।
इन्हीं माननीय का संविधानिक निर्णय एक सनके हुए शहज़ादे ने सरे आम यह कहते हुए फाड़ दिया था "ऑर्डिनेंस फर्डिनेंस 'कुछ नहीं होता है।
veerujan.blogspot.com
vaahgurujio.blogspot.com
kabirakhadabazarmein.blogspot.com
veerujan.blogspot.com
vaahgurujio.blogspot.com
kabirakhadabazarmein.blogspot.com
माननीय सुधीर चौधरी भाई (ज़ीन्यूज़ ) ,
आप टुकड़खोर ,चाटुकार , साहित्य से अर्थार्जन करने वाले लौटंक साहित्यिक कलहकारों ,चंद बोलीवुडिया कलहकार खानों के व्यवहार की संवेदन हीनता से आहत न हों। कश्मीर का दर्द इनकी संवेदनाओं का वायस नहीं हो सकता। ये इस या उस राजनीति के भड़बूज़ों के पाले हुए हैं। आप सोचते हैं आमिर खान के अंदर ऐंठन उनकी अपनी है। पूरा दगैल तंत्र है इनके पीछे जो देश की सम्पदा को लूट रहा था। कभी नेशनल हेराल्ड के बहाने कभी कोई विदेशी कम्पनी से मुनाफ़ा बटोरने के बहाने। इस्केम तो इनका पेशा था।
इस देश का सहिष्णु मन अब नंगों को नंगा कहना सीख गया है। आज वो विरक्त भाव से ये नहीं कहता -कोई नृप होय हमें का हानि। वह आशावान है एक दगैल तंत्र से मुक्ति के बाद।
राजनीति
परिंदे अब भी पर तौले हुए हैं ,हवा में सनसनी घोले हुए हैं :जी ज़नाब देश में आपात काल जैसे हालात हैं -श्री यशवंत सिन्हा जी से विमुख युवा भीड़ भी आज खबरदार है। बैंगलुरु में शहजादे को अपना कद पता चल गया होगा।देश को प्रधानमन्त्री मिलगया है जो आर्त भाव से नहीं बराबरी के भाव से संवाद करता है। विदेशी निवेश का भारत की और बहाव हमारे अनिवासी भारतीयों को भी भारत की और खींचेगा। अभी तक तो ऐसे हालात ही न थे कि दगैल तंत्र के बीच कोई आने का भी सोच सके। जबकि कितने ही वापस आना चाःते हैं। एक स्वच्छ तंत्र चाहिए सबसे पहले जिसकी नींव अब तैयार है।
परिंदे अब भी पर तौले हुए हैं ,हवा में सनसनी घोले हुए हैं :जी ज़नाब देश में आपात काल जैसे हालात हैं -श्री यशवंत सिन्हा जी से विमुख युवा भीड़ भी आज खबरदार है। बैंगलुरु में शहजादे को अपना कद पता चल गया होगा।देश को प्रधानमन्त्री मिलगया है जो आर्त भाव से नहीं बराबरी के भाव से संवाद करता है। विदेशी निवेश का भारत की और बहाव हमारे अनिवासी भारतीयों को भी भारत की और खींचेगा। अभी तक तो ऐसे हालात ही न थे कि दगैल तंत्र के बीच कोई आने का भी सोच सके। जबकि कितने ही वापस आना चाःते हैं। एक स्वच्छ तंत्र चाहिए सबसे पहले जिसकी नींव अब तैयार है।
जैश्रीकृष्णा।
शीर्षक : परिंदे अब भी पर तौले हुए हैं ,हवा में सनसनी घोले हुए हैं :जी ज़नाब देश में आपात काल जैसे हालात हैं -श्री यशवंत सिन्हा जी
शीर्षक : परिंदे अब भी पर तौले हुए हैं ,हवा में सनसनी घोले हुए हैं :जी ज़नाब देश में आपात काल जैसे हालात हैं -श्री यशवंत सिन्हा जी
Comments
Post a Comment