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Quran doesn't discriminate against women ......Indian mosques are a male monopoly from lack of understanding and patriarchy '

Quran doesn't discriminate against women ......Indian mosques are a male monopoly from lack of understanding and patriarchy '

Quran doesn't discriminate against women ......Indian mosques are a male monopoly from lack of understanding and patriarchy '

Quran doesn't discriminate against women ......Indian mosques are a male monopoly from lack of understanding and patriarchy '

क़ुरान में ५९ मर्तबा पैगम्बर मोहम्मद हाज़रीन सम्बोधन से औरत और मर्द दोनों से एक साथ मुखतिब होते हैं नमाज़ अता करने के लिए वे समुदाय पर बल देते हैं यूं अकेले रहकर भी किसी भी जगा नमाज़ अता की जा सकती है लेकिन सामूहिक प्रार्थना नमाज़ को सम्पूर्णता की ओर परफेक्शन की ओर ले जाती है। सामूहिकता का अपना असर होता है। जो नमाज़ की इबादत, सज़दे की ताकत में इज़ाफ़ा करता है। अज़ान के स्वर न्योता होतें हैं नमाज़ के लिए। ये बुलावा सबके लिए होता है।


'हदीथ ' में पैगमबर( पैगंम्बर )साहब की हिदायतें हैं। कहीं भी मर्द को ये हक़ नहीं दिया गया है वह मौतरमाओं को मस्जिद में जाने से रोके। कहीं भी इंस्टेंट तलाक (तीन तलाक )की बात नहीं की गई है। अलबत्ता तीन बार तलाक लेकर शौहर और बीवी अलग ज़रूर हो सकते हैं लेकिन तीसरा तलाक फिर मुकम्मिल अलहदगी होती है।



हिन्दुस्तान के दिल दिल्ली में ज़मात -ऐ -हिन्द का मुख्यालय है यहां एक साथ आज भी महिलाओं को जुम्मे की नमाज़ अता करते देखा जा सकता है।उनके लिए इस एवज़ अलग स्थान मुकर्रर है। इस संस्था के संस्थापक मौदूदी साब रहे हैं।

केरल



Q राज्य में सबसे ज्यादा अरबी पढ़ने समझने वाले हमारे मुस्लिम भाई बहनें हैं वहां सैंकड़ों की तादाद में मस्जिदों में महिलाओं के अलग जगा नमाज़ अता करने के लिए रखीगई है। इसे खुलेपन के मामले में हिंदुस्तान का तुर्की कहा जा सकता है जहां इल्म सबसे ज्यादा है तरक्की पसंद मोतरमायें हैं।बेहतरीन लिबास में हाथ में स्मार्ट फोन लिए इन्हें देखा जा सकता है। फर्राटे दार ज़बान बोलते। अपने इंडियन नेवल एकाडेमी एषिमला (INA,EHIMALA ,DIST,KANNUR)के दो साला प्रवास के दौरान मैंने देखा किसी भी खाने पीने की बेहतरीन उम्दा जगा पर मौतरमाओं की तादाद ज्यादा रहती है। बसों में इनकी सीट भले खाली पड़ी रहे कोई मर्द उस पर नहीं बैठेगा। यही बात मैंने इरनाकुलम (कोचीन )में भी देखी है। सवाल ये है की बाकी हिन्दुस्तान में मुल्लाओं ने अपनी मनमानी कैसे चलाये रखी है। हाजी अली की दरगाह (मुंबई )आखिर मौतरमाओं ने ही अपने प्रयासों से अपने तैं खुलवाई। तीन तलाक के मामले में भी इनकी पहल रही है। इनके लिए हिन्दुस्तान में अलग sem-in-raries (मज़हब की पढ़ाई के लिए स्कूल ,कालिज मदरसे )होवें जहां क़ुरआन हाफिज़ाएं तैयार की जा सकें,क़ुरआन हाफ़िज़ की तरह जिन्हें पूरी कुरआन जबानी याद हो। हज़ हो या उमराह इनकी साझेदारी हर कदम पर चाहिए। सबसे बड़ी (ओहदे में )समझे जानी वाली मदीना मस्जिद में दोनों एक ही समय पर दो अलग अलग हालों में नमाज़ अता करते हैं।

बड़ी अजीब बात है आतंकियों का मस्जिद में डेरा और पाकीज़आ मौतरमाओं को प्रवेश की इज़ाज़त नहीं।जय हो मुल्ला ,जयजय मुल्ला।

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