क्या है चुनावी बॉन्ड?
केंद्र सरकार ने देश के राजनीतिक दलों के चुनावी चंदे को पारदर्शी बनाने के लिए वित्त वर्ष 2017-18 के बजट में चुनावी बॉन्ड शुरू करने का एलान किया था। चुनावी बॉन्ड का इस्तेमाल व्यक्तियों, संस्थाओं और भारतीय और विदेशी कंपनियों द्वारा राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए किया जाता है। नकद चंदे के रूप में दो हजार से बड़ी रकम नहीं ली जा सकती है। सरकार की दलील है कि चूंकि बॉन्ड पर दानदाता का नाम नहीं होता है, और पार्टी को भी दानदाता का नाम नहीं पता होता है। सिर्फ बैंक जानता है कि किसने किसको यह चंदा दिया है। इसका मूल मंतव्य है कि पार्टी अपनी बैलेंसशीट में चंदे की रकम को बिना दानदाता के नाम के जाहिर कर सके।
वैचारिक कंगाली से ग्रस्त सोनिया -राहुल कांग्रेस (सोनिया -आर)खुद के लिए चंदे में प्राप्त राशि को देख ...... बौखलाहट में है ,जो लोग देश के श्रमिक वर्ग को रोज़गार मुहैया करवाते हैं उन्हें आप नाम ले लेकर दिन रात कोसते हैं। प्रात : नित्य कर्म जैसा है जिनका काम आर.एस. एस को गाली देना जिनके दामाद साहब एन.एस.जी को बरतरफ़ कर अपने सी क्योरिटी गार्ड्स पर ज्यादा भरोसा करते हैं वही आज एन.एस.जी. सुरक्षा हटाए जाने का रोना रो भी रो रहें हैं।कितने भ्रमित और शिजोफ्रेनिक हैं ये लोग इन्हें सांप में नहीं चंदे में रस्सी दिखाई दे रही है। ये लोग राजनीतिक चंदे में मिली कमतर राशि को देख पड़ोसी को चंदे में ज्यादा मिली राशि को देख ईर्ष्या कर रहें हैं। पारदर्शिता का रोना रो रहें हैं।अझिल्लड़, अस्पस्ट ,धुंधला ,ओपेक कह रहे हैं।
ये राष्ट्रीय- भ्रस्ट -आचार्य भ्र्ष्टा -चार पर प्रलाप कर रहें हैं। प्रदर्शन प्रायोजक हैं यही लोग जबकि चंदे में पड़ोसी को मिली रकम से वाकिफ हैं। फिर भी पारदर्शिता की बात कर रहें हैं। एक परिवार के राजकीय पिठ्ठू 'अम्बानी अम्बानी -अदानी अदानी' कर रहें हैं। यूं ये अपेक्स कोर्ट का उकील बताते हैं खुद को। फिर ये जंतरमंतर पर क्या कर रहें हैं ?जेेएनयू के छात्र इनसे कहीं बेहतर हैं।वो जो करते हैं सरे आम करते हैं। भले उनके प्रतिनिधि कन्हैया रहे हों या पाकिस्तान सोच के मणिकंकर या फिर इंतिहा पसंद सिद्धू वहां फिर भी एक ईमानदारी है। धौंस है। यह तो ऐसा धुंध फैलाकर धुआं पैदा करके कर रहें हैं। ब्लेक हॉल ब्लेक एनर्जी बन गए हैं ये वाड्रा ख्याति के लोग।
वैचारिक कंगाली से ग्रस्त सोनिया -राहुल कांग्रेस (सोनिया -आर)खुद के लिए चंदे में प्राप्त राशि को देख ...... बौखलाहट में है ,जो लोग देश के श्रमिक वर्ग को रोज़गार मुहैया करवाते हैं उन्हें आप नाम ले लेकर दिन रात कोसते हैं। प्रात : नित्य कर्म जैसा है जिनका काम आर.एस. एस को गाली देना जिनके दामाद साहब एन.एस.जी को बरतरफ़ कर अपने सी क्योरिटी गार्ड्स पर ज्यादा भरोसा करते हैं वही आज एन.एस.जी. सुरक्षा हटाए जाने का रोना रो भी रो रहें हैं।कितने भ्रमित और शिजोफ्रेनिक हैं ये लोग इन्हें सांप में नहीं चंदे में रस्सी दिखाई दे रही है। ये लोग राजनीतिक चंदे में मिली कमतर राशि को देख पड़ोसी को चंदे में ज्यादा मिली राशि को देख ईर्ष्या कर रहें हैं। पारदर्शिता का रोना रो रहें हैं।अझिल्लड़, अस्पस्ट ,धुंधला ,ओपेक कह रहे हैं।
ये राष्ट्रीय- भ्रस्ट -आचार्य भ्र्ष्टा -चार पर प्रलाप कर रहें हैं। प्रदर्शन प्रायोजक हैं यही लोग जबकि चंदे में पड़ोसी को मिली रकम से वाकिफ हैं। फिर भी पारदर्शिता की बात कर रहें हैं। एक परिवार के राजकीय पिठ्ठू 'अम्बानी अम्बानी -अदानी अदानी' कर रहें हैं। यूं ये अपेक्स कोर्ट का उकील बताते हैं खुद को। फिर ये जंतरमंतर पर क्या कर रहें हैं ?जेेएनयू के छात्र इनसे कहीं बेहतर हैं।वो जो करते हैं सरे आम करते हैं। भले उनके प्रतिनिधि कन्हैया रहे हों या पाकिस्तान सोच के मणिकंकर या फिर इंतिहा पसंद सिद्धू वहां फिर भी एक ईमानदारी है। धौंस है। यह तो ऐसा धुंध फैलाकर धुआं पैदा करके कर रहें हैं। ब्लेक हॉल ब्लेक एनर्जी बन गए हैं ये वाड्रा ख्याति के लोग।
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