खोया तो बहुत कुछ लेकिन वो क्या कहते हैं हर चीज़ के दो पहलू होते हैं -एक कृष्ण पक्ष एक शुक्ल पक्ष। यहां हम शुक्ल पक्ष का ज़ायज़ा तो लेंगे ही साथ ही यह भी देखेंगे हम कैसा पाखंड पूर्ण दोहरा जीवन जी रहें हैं।जहां हम अब तक डेढ़ पृथ्वी के समतुल्य संसाधन चट कर चुकें हैं और असलियत से जलवायु संकट की ज़ोरदार दस्तक से ट्रंप सोच के चलते आँखें मूंदे हुए हैं।जबकि प्रकृति ने अपनी इच्छा जाहिर कर दी है।
कोरोना टाइम्स ने हमें यह सिखाया है कि हमें पृथ्वी का सिर्फ दोहन और शोषण नहीं करना है पोषण भी करना है। तभी क़ायम रह सकने लायक विकास का हमारा सपना पूरा हो सकेगा।
कोरोना काल ने किया युग परिवर्तन -पहले कल कारखानों का शोर था। अब पक्षियों का कलरव है। सुबह करीने से होती है। चिड़ियों की चै चै मोर की पीहू पीहू से।
पहले पैसे के लिए भागम भाग अब पैसे को देखकर दूर भागते लोग -कहीं ये दो हज़ार का नॉट कोरोना वायरस सार्स -कोव -२ से संक्रमित तो नहीं किसी आतंकी सोच की चाल तो नहीं।पैसे की सीमा खुलकर सामने आ गई है जीवन की नश्वरता से साक्षात्कार है कोरोना टाइम्स है ।
ब्रह्माकुमारीज़ सोच के लोग कह सकते हैं -हम न कहते थे कल युग जा रहा है सतयुग आ रहा है। क्या सचमुच कलयुग आ गया है ?पुलिस सचमुच की शहरी शहर फ्रेंडली पीपल फ्रेंडली पुलिस का रोल अपनी पूरी निष्ठा से निभा रही है। लोगों को खाना खिला रही है अपनी गिरह से।
अब हम खाना खाने से पहले ही नहीं दिन में कई मर्तबा साबुन से रगड़ -रगड़ कर तसल्ली से हाथ धोने लगें हैं पूरे चालीस सेकिंड कोई -कोई तो एक मिनिट तक हाथ ही धौ रहा है। क्या यह कोरोना कम्पलसिव ऑब्सेसिव बिहेवियर है -ऑब्सेसिव कम्पलसिव डिसऑर्डर है या हमारे इस दौर की हकीकत के अब ज़िंदा रहने के लिए हाथ धोना ज़रूरी हो गया है। दादी माँ कबसे कहती थी हम नहीं समझे -कहते थे हाथ उतने गंदे ही नहीं किये हैं जो धोना पड़े।
आज हम लोकडाउन में हैं ,प्रकृति स्वतन्त्र है ,जानवर मॉल्स में घूमने लगें हैं हाथियों के झुण्ड मुख्य मार्ग क्रॉस कर रहें हैं मोर नांच रहें हैं, नदियों का पानी पारदर्शी हो गया है स्वच्छ है पेय है। नदियों की स्वत : शोधन की क्षमता लौट आई है। क्या हमारे लिए यह सबक नहीं हैं हम सात सौ अस्सी करोड़ लोग पृथ्वी अम्मा का सम्मान करना सीखें उसके संकेतों को समझें।
क्या सिम्बिओटिक लिविंग परस्पर सहजीवन सहपोषण नहीं हो सकता हमारे और शेष जीव -प्रजातियों के बीच ? आइंदा पशु पक्षी परिंदे हमारे चिड़िया घरों में अजायबघरों में हमारे मनोरंजन का वॉयस (साधन )न बन अपने प्राकृत आवासों कुदरत द्वारा बख्शे गए घरोंदों में हेबिटाटों में रहें।अब तक जो हो चुका सो हो चुका हम एक ट्रिलियन पेड़ लगाए (दस खराब नए पेड़ लगा उनकी हिफाज़त कर हम जलवायु परिवर्तन के संकट को अब भी टाल सकते हैं। क्या हम ट्रम्प की मानेंगे या अबके नवंबर जो बिडेन को लाएंगे जो पर्यावरण को बचाने पेरिस समझते के अनुरूप कदम उठा सकते हैं। कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर हमारी हवा में अब ३३२ पार्ट पर मिलियन से ऊपर न जा पाए। क्या यह असंभव है ऐसा कर दिखाना इस शती के अंत तक नामुमकिन है ?कोरोना टाइम्स पूछता है।
पहले मांसाहर से महामारी और अब शाकाहार की ओर वापसी। क्या कोई मध्य मार्ग नहीं है बीच का रास्ता नहीं है।
क्या एग्जॉटिक फ़ूड के नाम पर चमकादड़ का सूप पीना ज़रूरी है। साँपों का सूप पिए बिना खाना हज़म नहीं होगा।अब कुत्ता बिल्ली श्यार गीदड़ सब कुछ ,जंगली ,वन्य और पालतु हम सबकुछ खाएंगे।सबको खाने वाले सर्वभक्षी शी जिनपिंग हैं हम लोग।
क्या हिन्दुस्तान को 'वुहान' और 'हर्बिन' (हरी बिन )ही बनाकर छोड़ेंगे हम लोग या अपना फ़र्ज़ समझ सबकी हिफाज़त में खड़े हो जाएंगे।
क्या पुण्य से परहेज़ बना रहेगा। दान का दम्भ कायम रहेगा। या इसे हम अपना कर्तव्य मानकर धार्मिक निष्ठा के साथ करेंगे। सूर्य और चंद्र ग्रहण के दौरान किसी अंधविश्वास या जनास्था से प्रेरित होकर नहीं जकात की तरह धर्मनिष्ठा के साथ दान करेंगे। बड़े सवाब का काम है जकात।
प्यासे को पानी पिलायेंगे भूखे को इस दौर में खाना खिलाएंगे। जो बन पड़ेगा मदद के लिए आगे आयेंगें ज़रूरतमंद की ?लेते हैं शपथ आज हम लोग।
'नेकी कर दरिया में डाल' यानी जो 'एक हाथ से दिया जाए वह दूसरे हाथ को भी पता न चले ' उसे कहते हैं दान। सोशल मीडिया पे हम उसका ढिंढोरा न पीटते दिखलाई दें।नेकी कर मीडिया में डाल से बचिए भाईजान !
कोरोना ने हमें अंतर्मुखी होने का मौक़ा दिया है।फतवा ज़ारी किया है असली - ये शरीर ही हमारा मंदिर है जिसमें देवता(आत्मा ,रूह )का वास है। यहीं है ,यही है, मंदिर -मस्जिद -गिरजाघर और गुरूद्वारा। ध्यान लगाइये अंदर झांकिए।
बत्लादें आपको बायोलॉजिकल ऑक्सीजन या जिसे बायोकैमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी )भी कहतें हैं में हरिद्वार हर की पौड़ी में २०फीसद कम हो गई है जबकि ऋषिकेश में ४७ फीसद की कमी दर्ज़ की गई है।
बीओडी जल में घुलित ऑक्सीजन की वह मात्रा है जो ऑक्सीजन सेवी जलजीवों के लिए मज़े से कार्बनिक पदार्थ के चयन अपचयन निम्नीकृत करने पचाने के लिए किसी ख़ास तापमान पर एक कालावधि में चाहिए होती है। घुलित ऑक्सीजन कमी को ही बीओडी कहते हैं। गंगा जल इसीलिए नहीं सड़ता था क्योंकि गंगोत्री गंगा स्रोत स्थल पर इसमें घुलित ऑक्सीजन की मात्रा बहुत अधिक होने के अलावा यहां वेग के साथ गंगाजल गिरता है। आपने देखा है हलावाई को कढ़ाई का दूध एक से दूसरे चौड़े पात्र में उछालते वह घुलित ऑक्सीजन की मात्रा को बढ़ाने की कोशिश ही है।कई लोग घरों में भी दूध उबालते वक्त चमचे से दूध भर के बार -बार कढ़ाई में एक ऊंचाई से गिराते वक्त अपने अनजाने ही इस वैज्ञानिक क्रिया को करते हैं।मोटे तौर पर हम कह सकते हैं जितना बीओडी एक क्रांतिक मान के नज़दीक आएगा उतनी ही जल की गुणवत्ता ऊपर आएगी अ -मल -निर -मल समझा जाएगा पानी। कृपया नीचे दिया गया लिंक (सेतु )देखें।
खोया तो बहुत कुछ लेकिन वो क्या कहते हैं हर चीज़ के दो पहलू होते हैं -एक कृष्ण पक्ष एक शुक्ल पक्ष। यहां हम शुक्ल पक्ष का ज़ायज़ा तो लेंगे ही साथ ही यह भी देखेंगे हम कैसा पाखंड पूर्ण दोहरा जीवन जी रहें हैं।जहां हम अब तक डेढ़ पृथ्वी के समतुल्य संसाधन चट कर चुकें हैं और असलियत से जलवायु संकट की ज़ोरदार दस्तक से ट्रंप सोच के चलते आँखें मूंदे हुए हैं।जबकि प्रकृति ने अपनी इच्छा जाहिर कर दी है।
कोरोना टाइम्स ने हमें यह सिखाया है कि हमें पृथ्वी का सिर्फ दोहन और शोषण नहीं करना है पोषण भी करना है। तभी क़ायम रह सकने लायक विकास का हमारा सपना पूरा हो सकेगा।
कोरोना काल ने किया युग परिवर्तन -पहले कल कारखानों का शोर था। अब पक्षियों का कलरव है। सुबह करीने से होती है। चिड़ियों की चै चै मोर की पीहू पीहू से।
पहले पैसे के लिए भागम भाग अब पैसे को देखकर दूर भागते लोग -कहीं ये दो हज़ार का नॉट कोरोना वायरस सार्स -कोव -२ से संक्रमित तो नहीं किसी आतंकी सोच की चाल तो नहीं।पैसे की सीमा खुलकर सामने आ गई है जीवन की नश्वरता से साक्षात्कार है कोरोना टाइम्स है ।
ब्रह्माकुमारीज़ सोच के लोग कह सकते हैं -हम न कहते थे कल युग जा रहा है सतयुग आ रहा है। क्या सचमुच कलयुग आ गया है ?पुलिस सचमुच की शहरी शहर फ्रेंडली पीपल फ्रेंडली पुलिस का रोल अपनी पूरी निष्ठा से निभा रही है। लोगों को खाना खिला रही है अपनी गिरह से।
अब हम खाना खाने से पहले ही नहीं दिन में कई मर्तबा साबुन से रगड़ -रगड़ कर तसल्ली से हाथ धोने लगें हैं पूरे चालीस सेकिंड कोई -कोई तो एक मिनिट तक हाथ ही धौ रहा है। क्या यह कोरोना कम्पलसिव ऑब्सेसिव बिहेवियर है -ऑब्सेसिव कम्पलसिव डिसऑर्डर है या हमारे इस दौर की हकीकत के अब ज़िंदा रहने के लिए हाथ धोना ज़रूरी हो गया है। दादी माँ कबसे कहती थी हम नहीं समझे -कहते थे हाथ उतने गंदे ही नहीं किये हैं जो धोना पड़े।
आज हम लोकडाउन में हैं ,प्रकृति स्वतन्त्र है ,जानवर मॉल्स में घूमने लगें हैं हाथियों के झुण्ड मुख्य मार्ग क्रॉस कर रहें हैं मोर नांच रहें हैं, नदियों का पानी पारदर्शी हो गया है स्वच्छ है पेय है। नदियों की स्वत : शोधन की क्षमता लौट आई है। क्या हमारे लिए यह सबक नहीं हैं हम सात सौ अस्सी करोड़ लोग पृथ्वी अम्मा का सम्मान करना सीखें उसके संकेतों को समझें।
क्या सिम्बिओटिक लिविंग परस्पर सहजीवन सहपोषण नहीं हो सकता हमारे और शेष जीव -प्रजातियों के बीच ? आइंदा पशु पक्षी परिंदे हमारे चिड़िया घरों में अजायबघरों में हमारे मनोरंजन का वॉयस (साधन )न बन अपने प्राकृत आवासों कुदरत द्वारा बख्शे गए घरोंदों में हेबिटाटों में रहें।अब तक जो हो चुका सो हो चुका हम एक ट्रिलियन पेड़ लगाए (दस खराब नए पेड़ लगा उनकी हिफाज़त कर हम जलवायु परिवर्तन के संकट को अब भी टाल सकते हैं। क्या हम ट्रम्प की मानेंगे या अबके नवंबर जो बिडेन को लाएंगे जो पर्यावरण को बचाने पेरिस समझते के अनुरूप कदम उठा सकते हैं। कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर हमारी हवा में अब ३३२ पार्ट पर मिलियन से ऊपर न जा पाए। क्या यह असंभव है ऐसा कर दिखाना इस शती के अंत तक नामुमकिन है ?कोरोना टाइम्स पूछता है।
पहले मांसाहर से महामारी और अब शाकाहार की ओर वापसी। क्या कोई मध्य मार्ग नहीं है बीच का रास्ता नहीं है।
क्या एग्जॉटिक फ़ूड के नाम पर चमकादड़ का सूप पीना ज़रूरी है। साँपों का सूप पिए बिना खाना हज़म नहीं होगा।अब कुत्ता बिल्ली श्यार गीदड़ सब कुछ ,जंगली ,वन्य और पालतु हम सबकुछ खाएंगे।सबको खाने वाले सर्वभक्षी शी जिनपिंग हैं हम लोग।
क्या हिन्दुस्तान को 'वुहान' और 'हर्बिन' (हरी बिन )ही बनाकर छोड़ेंगे हम लोग या अपना फ़र्ज़ समझ सबकी हिफाज़त में खड़े हो जाएंगे।
क्या पुण्य से परहेज़ बना रहेगा। दान का दम्भ कायम रहेगा। या इसे हम अपना कर्तव्य मानकर धार्मिक निष्ठा के साथ करेंगे। सूर्य और चंद्र ग्रहण के दौरान किसी अंधविश्वास या जनास्था से प्रेरित होकर नहीं जकात की तरह धर्मनिष्ठा के साथ दान करेंगे। बड़े सवाब का काम है जकात।
प्यासे को पानी पिलायेंगे भूखे को इस दौर में खाना खिलाएंगे। जो बन पड़ेगा मदद के लिए आगे आयेंगें ज़रूरतमंद की ?लेते हैं शपथ आज हम लोग।
'नेकी कर दरिया में डाल' यानी जो 'एक हाथ से दिया जाए वह दूसरे हाथ को भी पता न चले ' उसे कहते हैं दान। सोशल मीडिया पे हम उसका ढिंढोरा न पीटते दिखलाई दें।नेकी कर मीडिया में डाल से बचिए भाईजान !
कोरोना ने हमें अंतर्मुखी होने का मौक़ा दिया है।फतवा ज़ारी किया है असली - ये शरीर ही हमारा मंदिर है जिसमें देवता(आत्मा ,रूह )का वास है। यहीं है ,यही है, मंदिर -मस्जिद -गिरजाघर और गुरूद्वारा। ध्यान लगाइये अंदर झांकिए।
बत्लादें आपको बायोलॉजिकल ऑक्सीजन या जिसे बायोकैमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी )भी कहतें हैं में हरिद्वार हर की पौड़ी में २०फीसद कम हो गई है जबकि ऋषिकेश में ४७ फीसद की कमी दर्ज़ की गई है।
बीओडी जल में घुलित ऑक्सीजन की वह मात्रा है जो ऑक्सीजन सेवी जलजीवों के लिए मज़े से कार्बनिक पदार्थ के चयन अपचयन निम्नीकृत करने पचाने के लिए किसी ख़ास तापमान पर एक कालावधि में चाहिए होती है। घुलित ऑक्सीजन कमी को ही बीओडी कहते हैं। गंगा जल इसीलिए नहीं सड़ता था क्योंकि गंगोत्री गंगा स्रोत स्थल पर इसमें घुलित ऑक्सीजन की मात्रा बहुत अधिक होने के अलावा यहां वेग के साथ गंगाजल गिरता है। आपने देखा है हलावाई को कढ़ाई का दूध एक से दूसरे चौड़े पात्र में उछालते वह घुलित ऑक्सीजन की मात्रा को बढ़ाने की कोशिश ही है।कई लोग घरों में भी दूध उबालते वक्त चमचे से दूध भर के बार -बार कढ़ाई में एक ऊंचाई से गिराते वक्त अपने अनजाने ही इस वैज्ञानिक क्रिया को करते हैं।मोटे तौर पर हम कह सकते हैं जितना बीओडी एक क्रांतिक मान के नज़दीक आएगा उतनी ही जल की गुणवत्ता ऊपर आएगी अ -मल -निर -मल समझा जाएगा पानी। कृपया नीचे दिया गया लिंक (सेतु )देखें।
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